यूपी के हाथरस में सत्संग हादसे के बाद नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल सुर्खियों में बने हुए हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको साकार हरि के जीवन से जुड़ा एक अनोखा किस्सा बताएंगे। जो शायद अबी तक आपने न सुना होगा। यह बाबा के जीवन से जुड़ा अहम किस्सा है।
भोले बाबा उर्फ सूरजपाल की शादी को लेकर लोगों के मन में उत्सुकता रहती है। तो आपको बता दें कि बाब की ससुराल उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हैं। जिले के जैथरा थाना क्षेत्र में आने वाला एक गांव है गुहटिया। इस गांव कते रहने वाले दंपती हरपाल सिंह और कलावती को दो पुत्री और एक पुत्र है। उनकी पुत्रियों में एक हैं प्रेमवती। इन्ही के साथ सूरजपाल का विवाह हुआ।
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शादी के बाद लगी सूरजपाल की नौकरी
सूरजपाल और प्रेमवती की शादी सन 1968 में हुई थी। उस समय सूरजपाल छठवीं तो प्रेमवती 5वीं कक्षा में पढ़तीं थीं। शादी के बाद सूरजपाल ने पढ़ाई जारी रखी। जबकि प्रेमवती गृहणी हो गईं। प्रेमवती के भाई मेवाराम बताते हैं कि शादी के बाद सूरजपाल घर आते जाते थे। कुछ समय बाद उनकी नौकरी लग गई।
नौकरी छोड़ सत्संग करने लगे
उन्होंने कई वर्षों तक नौकरी की। इसके बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्त लेकर घर आ गए। यहां पर सत्संग करने लगे। सत्संग शुरू करने के बाद बाबा का आना-जाना कम हो गया। हम लोग भी उनके भक्त हो गए। ससुराल के लोग बताते हैं कि वर्ष 1995 में बाबा आए थे। तब 15 दिन तक रुके थे। आसपास कई जगह सत्संग किया।
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सास की तेरहवीं पर आखिरी बार गए ससुराल
बताते हैं कि यहां सत्संग में बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी हो गए। वर्ष 2000 में प्रेमवती की मां कलावती का देहांत हो गया। उनकी तेरहवीं में भोले बाबा का सत्संग रखा गया था। यह आखिरी मौका था, जब भोले बाबा पत्नी प्रेमवती के साथ गांव आए थे।
नाम की रह गई रिश्तेदारी
बताया कि हम लोग भी बाबा के भक्त हो गए। प्रसिद्धि मिलने पर बाबा ने आना-जाना बंद कर दिया। उनके मूल निवास कासगंज जिले के पटियाली के बहादुरनगर गांव हम लोग पहुंचते थे। तब वहां औपचारिक मुलाकात हो जाती थी। रिश्तेदारी नाम की रह गई।
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आगरा में बवाल पर गए थे जेल
बताया कि सूरजपाल और प्रेमवती को कोई संतान न थी। इस पर अपने साले मेवाराम की पुत्री को उन्होंने गोद ले लिया था। उसकी मृत्यु हो गई। आगरा में उसे जिंदा करने के प्रयास में काफी बवाल हुआ था। मामले में सूरजपाल सहित उनके सात अनुयायियों पर मुकदमा भी दर्ज किया गया। इसमें वह जेल भी गए।
रिश्तेदारी जैसी बात नहीं रखी
साले मेवाराम बताते हैं कि हम लोग भी उनका सत्संग सुनने जाते हैं। हालांकि हम लोगों ने कभी किसी प्रकार की कामना नहीं की। उन्होंने रिश्तेदारी जैसी बात नहीं रखी थी। हारी-बीमारी, परेशानी-खुशी के मौकों पर भी आना छोड़ दिया। हम लोग मिलने के लिए बहादुरनगर जाते थे, तो वहां का पानी भी नहीं पीते थे। बाबा के रूप में उनसे मुलाकात हो जाती थी।
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भतीजा भी गया था सत्संग सुनने
रिश्ते में भतीजे लगने वाले राजेश ने बताया कि दोनों हमारे बुआ-फूफा हैं। अब तो वह सबके रिश्तेदार हैं। हम लोग उनके आश्रम में मिलने तो जाते हैं, लेकिन भीड़ के चलते मुलाकात नहीं हो पाती। हादसे वाले दिन मैं भी सत्संग में गया था। सत्संग के बाद निकलकर आ गया। पता भी नहीं लगा था कि हादसा हो गया। बाद में जानकारी हुई।