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बतकही/फतेहपुर; सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। वैसे तो पूरे महीने शिव के दर्शन को शिवालयों में श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन, सोमवार को विशेष महत्ता रहती है। सावन के सोमवार को शिवालयों में मेला लगता है। भक्त दूध और गंगाजल से भगवान भोलनाथ का अभिषेक करके बेलपत्र अर्पित करते हैं। कांवड़िये भी गंगाजल लेकर पैदल चलकर शिवधाम तक पहुंचते हैं।

इसी कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं, ऐसे शिवालय के बारे में जिनकी स्थापना अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने की थी। यह दिन में तीन पहर अपना रंग बदलती है। इसका आकार दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। यही कारण है कि श्रद्धालुओं को यह मंदिर कोई बार तोड़कर ऊंचाई से बनवाना पड़ा। भगवान भोलेनाथ का यह सुप्रसिद्ध मंदिर यूपी के फतेहपुर में स्थित है।

यहां स्थित है Thavishwar Dham

स्थान है बहुआ ब्लॉक का थवई गांव। यह कानपुर-बांदा मार्ग पर स्थित कीर्तिखेड़ा गांव से महज 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। गांव में निचली गंग नहर किनारे बना है थवईश्वर महादेव (Thavishwar Dham) का विशाल मंदिर। थवईश्वर महादेव का मंदिर परिसर सात बीघे में फैला है। इसका गुंबद करीब 40 फीट ऊंचा है। इसकी महिमा अपरंपार है। यहां शिवरात्रि पर तो विशाल मेला लगता ही है, सावन के सोमवार को भी बढ़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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Thavishwar Dham का पौराणिक महत्व भी है

जिले ही नहीं आसपास के कई जनपदों से भगवान भोलेनाथ के भक्त दर्शन को पहुंचते हैं। कांवड़िये पैदल चलकर जलाभिषेक को पहुंचते हैं। भगवान शिव यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त भोलेनाथ के मंदिर में चढ़ावा चढ़ाते हैं। इस धाम का पौराणिक महत्व भी बताया जाता है।

अर्जुन ने की थी Thavishwar Dham की स्थापना

मंदिर की देखरेख पुजारी रामकृपाल मिश्र करते हैं। रामकृपाल बताते हैं कि इस मंदिर का उल्लेख शास्त्रों में भी है। वह बताते हैं कि इस शिवलिंग की स्थापना अर्जुन ने अज्ञातवास के दौरान की थी। वर्तमान में शिवलिंग की ऊंचाई तीन फीट है। शिवलिंग की ऊंचाई प्रतिवर्ष बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि पहले मंदिर जंगल के बीच में था। क्षेत्रीय लोगों की मदद से इसका जीर्णोद्धार करवाया गया है।

Thavishwar Dham में गुड़ का लगता है भोग

थवईश्वर महादेव, मेवा मिष्ठान नहीं बल्कि गुड़ खाकर ही प्रसन्न हो जाते हैं। यहां ग्रामीण शिवलिंग को गुड़ का भोग लगाते हैं। बताया जाता है कि यह शिवलिंग हर पहर अपना रंग बदलता है। सूर्योदय के समय इसमें लालिमा तो दोपहर को हल्की सफेद हो जाती है। वहीं सूर्यास्त के समय शिवलिंग भूरे रंग की प्रतीत होती है।

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दिन में तीन बार शिवलिंग बदलती रंग

ग्रामीण बताते हैं कि सिर्फ रंग बदलना ही नहीं अपितु शिवलिंग की एक और विशेषता है। प्रति वर्ष चावल के एक दाने के बराबर इसका आकार बढ़ता है। यहां दर्शन करने आने वाले भक्तों की पीड़ा हर जाती। धीरे-धीरे इसकी महिमा का बखान जिले से बाहर भी होने लगा। लोग दूर-दूर से दर्शन को आने लगे। यहां थवईश्वर महादेव मंदिर के अलावा कई अन्य छोटे-छोटे मंदिरों की श्रंखला है।

15 दिन तक लगता विशाल मेला

थवईश्वर धाम में वर्ष में तीन बार मेली लगता है। कार्तिक पूर्णिमा और शिवरात्रि पर लगने वाला मेला काफी प्रसिद्ध है। शिवरात्रि पर 15 दिन का विशाल मेला लगता है। यह शिवरात्रि के दिन से शुरू होकर होली के दिन तक चलता है। इस मेले मेले में छोटे (रसोई की जरूरतों) सामान से लेकर बड़े सामान (बेड, तखत, सोफा…आदि) तक की दुकानें सजती हैं। ग्रामीण इस मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं। वह घर की जरूरतों के साथ ही बच्चों की शादी का सामान भी इसी मेले से खरीदते हैं।

एक और स्वयंभू शिवलिंग की महत्ता

इसी गांव में भगवान शिव के जुड़ी एक और कहानी प्रसिद्ध है। ग्रामीण बताते हैं कि करीब 150 वर्ष पहले ब्रिटिश शासन काल में किसानों के लिए सिचांई की व्यवस्था करने के उद्देश्य से निचली गंग नहर की खुदाई की जा रही थी। खुदाई करते समय थवई गांव के किनारे मजदूरों के फावड़े में एक पत्थर टकराया। पहले तो मजदूरों ने इसे सामान्य पत्थर समझकर खुदाई करते रहे। लेकिन जितनी खुदाई की जाती पत्थर की सीमा समाप्त ही नहीं होती।

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जानकारी अधिकारियों को दी गई। अधिकारियों की देखरेख में खुदाई शुरू हुई, लेकिन पत्थर बढ़ता ही जा रहा था। जब काफी गहराई तक खुदाई हो गई तो पत्थर का आकार शिवलिंग की तरह समझ आया। इससे लोगों में आस्था जाग गई। इसे देखने के लिए आसपास के गावों से लोगों की भीड़ जुटने लगी।

मोड़ना पड़ा नहर का रास्ता

लोगों की आस्था को देखते हुए यह तय हुआ कि इस शिवलिंग को निकालकर कहीं मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया जाए। फिर से खुदाई शुरू की गई। 5 फीट, 10 फीट, 15 फीट से अधिक की खुदाई की गई। लेकिन, शिवलिंग का अंत नहीं मिला। इस पर अधिकारियों ने हारकर नहर का रास्ता मोड़ लिया।

यहां पर ग्रामीणों ने भगवान भोलेनाथ के मंदिर का निर्माण कर लिया। ग्रामीण शिवलिंग की पूजा आराधना करने लगे। यह मंदिर भी थवईश्वर धाम की श्रंखला में बसे शिवमंदिरों में से एक है। यहां आने वाले भक्त इसके भी दर्शन लाभ लेते हैं।

ब्रिटिश शासन काल में निकली थी मूर्ति

मंदिर के मुख्य पुजारी दामोदर दास जी हैं। उन्होंने बताया कि वह 50 वर्षों से भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा-आराधना कर रहे हैं। बताया कि पहले यहां एक विशालकाय टीला था। ब्रिटिश शासन काल में नहर की खोदाई करते समय शिव लिंग निकली। इसी टीले पर शिवलिंग स्थापित करके मंदिर का रूप दिया गया। एक बार कानपुर से एक व्यापारी दर्शन करने पहुंचा। यहां की महत्ता और भगवान शिव की कृपा से उसने इस मंदिर का निर्माण कराया।

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