बतकही/फतेहपुर; सावन के महीने में हम आपको प्रसिद्ध शिव मंदिरों की यात्रा करा रहे हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको श्री जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) की महिमा के बारे में बताएंगे। महाभारत कालीन यह शिव मंदिर अपने आप में अद्भुत है। सच्चे मन से दर्शन करने मात्र से भगवान शिव प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं।
स्थान यूपी का फतेहपुर जिला। शहर मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर गाजीपुर से असोथर जाने वाले मार्ग पर स्थित है ‘श्री जागेश्वर महादेव मंदिर’। वैसे तो यहां वर्ष भर श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन, सावन माह और शिवरात्रि पर विशेष रूप से पहुंचते हैं।
अज्ञातवास में रुके थे पांडव
आसपास रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर महाभारत कालीन है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पहुंचे थे। उन्होंने इस मंदिर में शरण ली थी। यहां रुकने के दौरान वह इस शिवलिंग की पूजा-आराधना करते थे। तब से यह शिव मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना है।
द्वापर युग की है मूर्ति
मंदिर की स्थापना के बारे प्रचलित किदवंती बुजुर्ग अपनी आगे वाली पीढ़ी को बताते हैं। इसी तरह इसकी स्थापना के बारे में मात्र अंदेशा लगाया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि द्वापर युग में भेड़ चराने के लिए भेड़ पालक जंगल गए थे। वहां वह अपने हंसिया से भेड़ों के लिए पत्ते काट रहे थे।
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इस तरह चला पता
इस दौरान उन्हें हंसिया में धार लगाने की आवश्यकता महसूस हुई। इस पर वह पास में पड़े पत्थर में हंसिया घिसकर धार लगाने लगे। धार लगाते समय अचानक उनका ध्यान पत्थर पर गया। उन्होंने देखा कि यह सामान्य पत्थर नहीं था। यह तो शिवलिंग के आकार का था। वह तुरंत पत्थर से पीछे हटे।
शिवलिंग को राजमहल मंगाना चाहते था राजा
उन्होंने इसकी सूचना गांव में दी। सूचना पर लोगों की भीड़ लग गई। पत्थर वास्तव में शिवलिंग था। खबर असोथर के तत्कालीन राजा तक पहुंची। इस पर राजा ने शिवलिंग को मंगाकर राजमहल के मंदिर में स्थापित करने की योजना बनाई। उसने सैनिकों को शिवलिंग लाने के लिए भेजा।
टस से मस न हुई शिवलिंग
सैनिक हाथी लेकर शिवलिंग लाने के लिए पहुंचे। उन्होंने हाथी की मदद से शिवलिंग को खींचने का प्रयास किया। लेकिन, हाथी शिवलिंग को टस से मस न कर सके। इसके बाद सैनिक हाथी को लेकर वापस राजमहल की ओर लौट पड़े। रास्ते में झब्बापुर गांव के पास शिवलिंग खींचने वाले हाथी की मौत हो गई।
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हाथी की हो गई मौत
संदेश राजा तक पहुंचा। इस राजा खुद वहां पहुंचे। इसके बाद उस हाथी को वहीं शिवलिंग के पास दफना दिया गया। इसके बाद उस जगह पर आम की बाग लगा दी गई। आज भी एक आम का पेड़ मौजूद है। इसे लोग हथिया आम के नाम से पुकारते हैं।
पाताल से निकली है पूर्ति
इसके बाद लोगों ने अंदेशा लगाया कि यह शिवलिंग पाताल से निकली है। शायद इसी वजह से हाथी भी टस से मस न कर सका। फिर उसी स्थान को मंदिर का रूप दे दिया गया। पाताल से निकली शिवलिंग की लोग पूजा अर्चना करने लगे। तब से समय समय पर इसी स्थान पर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
कराई गई प्राण प्रतिष्ठा
स्थानीय लोगों ने बताया कि सम्वत 1950 में बाबू गोपी साहू ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करके भव्य स्वरूप दिया। एक बार फिर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। मंदिर के गुंबद अशिखर के रूप में बनाए गए हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं।
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
महाशिवरात्रि पर जागेश्वर धाम में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगती है। इस मौके पर यहां 15 दिन तक मेला लगता है। इसमें दूर-दूर से लोग दुकानें लगाने के लिए आते हैं। धीरे-धीरे इसकी महिमा का गुणगान सुन दूर-दराज से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।
पहुंचता है भक्तों का रेला
शिवरात्रि के अतिरिक्त सावन माह में भी यहां भक्तों का रेला पहुंचता है। लोग सोमवार और सामान्य दिन में शिवलिंग पर जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक करके बेल पत्र अपर्ति करते हैं। इस तरह वह भगवान शिव की कृपा पाते हैं। आसपास के जनपदों से भी लोग यहां दर्शन और पूजा को पहुंचते हैं।