chitrakoot goshna/ चित्रकूट घोषणा (source; freepik)chitrakoot goshna/ चित्रकूट घोषणा (source; freepik)

भूमिहीन कृषि श्रमिकों को समर्पित ‘चित्रकूट घोषणा’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसमें श्रमिकों के आर्थिक सशक्तिकरण पर विशेष जोर है। ताकि, कृषि क्षेत्र को पहले से अधिक मजबूत बनाया जा सके। इसके लिए मध्य प्रदेश के चित्रकूट जिले में विशेषज्ञों ने गहन विमर्श किया। इसके बाद इसके लागू करने का ऐलान किया गया। इसे शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और नेताओं का भी समर्थन मिला। सभी ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए सर्वसम्मति से इसे अपनाया।

कार्यक्रम को राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर और मूर्ति फैकल्टी फेलो डॉ. गुर्रम अशोक लीड कर रहे हैं। डॉ गुर्रम जीएसएचएस, जीआईटीएएम (मानित) विश्वविद्यालय, हैदराबाद परिसर में कार्यरत हैं। डॉ. गुर्रम अशोक ने बताया कि चित्रकूट घोषणा को 30 जून, 2024 को सर्वसम्मति से अपनाया गया। यह दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय सिद्धांत की प्रतिबद्धता को दोहराती है। इसका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान है।

सर्वोदय सिद्धांत के करीब अंत्योदय दर्शन

उन्होंने बताया कि दीनदयाल के अंत्योदय दर्शन का लक्ष्य वर्ग विहीन, जाति विहीन और शोषण मुक्त समाज का निर्माण है। हालांकि अंत्योदय विचार भारतीय दर्शन में कोई नई अवधारणा नहीं है। यह वेदों एवं उपनिषदों तथा महाभारत में पहले से मौजूद है। यह धारणा समाज में हर किसी के कल्याण की कामना करती है। अंत्योदय सिद्धांत कहीं न कहीं महात्मा गांधी के सर्वोदय सिद्धांत (सभी का उत्थान) के करीब मिलती है।

‘भूमिहीन कृषि मजदूरों का आर्थिक सशक्तिकरण’ पर किया गया विचार

डॉ गुर्रम बताते हैं कि यह अवधारणा डॉ. बीआर अंबेडकर के सामाजिक न्याय (हाशिये पर पड़े लोगों को सशक्त बनाना एवं उनके साथ निष्पक्षता से व्यवहार करना) को भी प्रतिध्वनित करती है। इन्हीं मार्गदर्शक सिद्धांतों का पालन करते हुए 29 और 30 जून 2024 को चित्रकूट में दो दिवसीय बैठक आयोजित का गई थी। इसमें ‘भूमिहीन कृषि मजदूरों का आर्थिक सशक्तिकरण’ पर विचार किया गया।

इसके माध्यम से कृषि क्षेत्र को मजबूत करने पर राष्ट्रीय कार्यशाला के तौर पर कार्यक्रम हुआ। इसमें विचार का केंद्र सबसे गरीब, भूमिहीन कृषि मजदूर रहे। कार्यशाला चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, मध्य प्रदेश में की गई थी।

आंकड़ें एक नजर में…

आंकड़ों की बात करें भूमिहीन खेतिहर मजदूर 2001 में 10.67 करोड़ थे। 2011 में ये 14.43 करोड़ हो गए। अभी यह संख्या और भी बढ़ सकती है। क्योंकि, ग्रामीण संकटों के कारण असमानताओं की खाई बढ़ती जा रही है। यह अक्सर किसानों के विरोध प्रदर्शनों के रूप में प्रकट होती है। कार्यशाला में विचार के बाद आम सहमति बनी कि भूमि हीनता सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े समाजों विशेषकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों में समस्या का केंद्र बिंदु है।

बेहतर भविष्य के लिए अतीत का मंथन: चंपारण से चित्रकूट तक

चित्रकूट घोषणा पत्र में भारत में ऐतिहासिक संघर्षों और राज्य नीतियों की समीक्षा में कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों के साथ विचार-विमर्श किया गया। विभिन्न कृषि संघर्षों में जैसे 1860 के दशक में गठित इंडिगो कमीशन के खिलाफ दक्कन दंगे और 1917 में चंपारण सत्याग्रह, 1918 में खेड़ा सत्याग्रह, 1925 में बारदोली सत्याग्रह और 1946-47 के दौरान तेबाघा आंदोलन, इन सभी आंदोलनों का उद्देश्य ब्रिटिश शासकों की दमनकारी औपनिवेशिक नीतियों से लड़ना था। साथ ही भारत के स्वतंत्र आंदोलन में भी योगदान देना था।

इन्हीं कृषि आंदोलनों ने महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, आंध्र प्रदेश के प्रोफेसर एनजी रंगा, बिहार के स्वामी सहजानंद सरस्वती और उत्तर प्रदेश के चौधरी चरण सिंह जैसे प्रमुख नेताओं को भी जन्म दिया। जिन्होंने 1930 के दशक से किसानों और भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की पीड़ा को शांत किया। इसके अलावा, निज़ाम शासन (1944-46) के दौरान तेलंगाना में कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से कृषि संघर्षों ने क्रांतिकारी मोड़ ले लिया। इसे किसान सशस्त्र संघर्ष (तेलंगाना सयुध पोरातम) के रूप में भी जाना जाता है।

भूमिहीन खेतिहर मजदूर सबसे कमजोर आर्थिक वर्ग

ब्रिटिश भारत में मालाबार क्षेत्र में मोपला विद्रोह (1921-22) और स्वतंत्र भारत के बाद 1967 में पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी आंदोलन भी इसी प्रकार के संघर्षों के परिणाम थे। चूंकि कृषि संकट का प्रश्न लगातार बना हुआ है। इसलिए, भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 48 में कृषि को आधुनिक वैज्ञानिक तर्ज पर व्यवस्थित करने और किसानों को सशक्त बनाने का प्रावधान है।

ऐसे संवैधानिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में, विभिन्न सरकारों ने सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए ‘जोतने वालों को भूमि’ के नारे के तहत भूमिहीनों को भूमि वितरित करके ‘भूमि सुधार’ जैसी योजनाएं तैयार की हैं। लेकिन, भूमिहीन खेतिहर मजदूर सबसे कमजोर आर्थिक वर्ग है। निरंतर बना हुआ है।

भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के उत्थान के लिए चित्रकूट घोषणा

इस संदर्भ में चित्रकूट घोषणा ग्रामीण-शहरी प्रवास और कृषि क्षेत्र में उभरते संकट के मूल कारण की पहचान करती है। यह घोषणा दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानवतावाद’ के दर्शन द्वारा निर्देशित है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि ग्रामीण कृषि संकट को घोर शोषण, कम भुगतान और खेती के अधिकारों से वंचित करने की समस्या को हल करके दूर किया जा सकता है।

समृद्ध भारत के निर्माण में दीनोदय के अंत्योदय को ‘ग्रामोदय से सर्वोदय’ (ग्रामीण उत्थान से सभी के उत्थान तक) से साकार किया जा सकता है। भारतीय समाज में सामाजिक समरसता (सामाजिक सद्भाव) का लक्ष्य रखते हुए ‘सर्वोदय से अभ्युदय’ (सभी के उत्थान से सभी के उत्थान तक) के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। घोषणा में सर्वसम्मति से भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के उत्थान का भी वादा किया गया।

अपनाई गईं ये पांच बातें 

  1. यद्यपि कृषि जीवन भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। लेकिन, घाटे और अंधाधुंध शहरीकरण के कारण पारंपरिक और जैविक कृषि पद्धतियों में अभूतपूर्व कमी आ रही है।
  2. भूमिहीनता का सबसे बड़ा शिकार ग्रामीण भारत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग हैं। उन्हें अक्सर जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वे सामाजिक अपमान से पीड़ित होते हैं। इसके कारण सामाजिक बहिष्कार और आय असमानताएं होती हैं।
  3. सरकार को ‘अंत्योदय योजना’ जैसी योजनाएं बनाकर भूमिहीन कृषि मजदूरों के समग्र विकास का लक्ष्य रखना चाहिए। दरअसल, राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सहकारी संघवाद की भावना भारत में ग्रामीण कृषि मजदूरों का सशक्तिकरण सुनिश्चित कर सकती है।
  4. किसानों पर निर्भर सभी कृषि ग्रामीण मजदूरों, कारीगरों और अन्य उद्यमियों को ‘एकल कृषि परिवार’ (कृषि परिवार) माना जाएगा। इस दृष्टिकोण में ग्राम समुदायों के बीच संघर्षों को समाप्त करने की क्षमता है।
  5. भूमिहीन किसान मजदूरों को सशक्त बनाकर कृषि क्षेत्र को मजबूत किया जा सकता है।

श्रमिकों के विकास के लिए की ये मांगें

  • भारत में ऐतिहासिक आंदोलनों और भूमि सुधारों की विफलता की समीक्षा के बाद ‘चित्रकूट घोषणा’ ग्रामीण विकास और भूमिहीन कृषि मजदूरों के सशक्तिकरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है। क्योंकि, उन्हें समाज में ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित किया गया है।
  • यह घोषणा पत्र मांग करता है कि ग्राम समुदायों में संघर्ष को समाप्त करने के लिए नीति निर्माण में भूमिहीन किसानों को ‘एकल कृषि परिवार’ (कृषि परिवार) के रूप में मानकर उन्हें एक अलग वर्ग के रूप में माना जाना चाहिए।
  • घोषणा पत्र में सभी सार्वजनिक उत्साही व्यक्तियों, संस्थानों और संगठनों से भारत के ग्राम गणराज्यों में जाति, लिंग और क्षेत्रीय असमानताओं को खत्म करके सामाजिक समरसता की स्थापना के प्रति संवेदनशील होने का आग्रह किया गया।
डॉ. गुर्रम अशोक (E-Mail: gashok529@gmail.com) , source; batkahi
डॉ. गुर्रम अशोक (E-Mail: gashok529@gmail.com) , source; batkahi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *